'इंट्रोस्पेक्शन' Featured
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- Published in गुरु मंत्र (गौरव बिस्सा)
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एक बड़े संत थे। बुजुर्ग हो गये थे। एक दिन उन्होंने सभी शिष्यों की परीक्षा लेकर यह तय करने का सोचा कि उनके पश्चात गुरु की पदवी पर कौन बैठे? संत ने सभी शिष्यों को बुलाकर प्रश्न पत्र दिया। प्रश्न पत्र में एक ही प्रश्न था। वो प्रश्न था कि गुरु की पदवी के लिये कौन सबसे योग्य है? इसके उत्तर में अधिकतर शिष्यों ने सबसे ऊपर स्वयं का नाम लिखा और उसके बाद दो तीन नाम और लिखे। जब संत ने ऐसे उत्तरों का कारण पूछा तो शिष्यों ने दूसरे शिष्यों के दोष गिनवा दिये। इसका अर्थ था कि वे सैकड़ों शिष्यों में सिर्फ दोष देखते थे और उनकी नजर में सिर्फ दो या तीन शिष्य ही गुरु की पदवी के लायक थे। एक शिष्य जिसे गुरु की पदवी मिली उसने बड़ा विचित्र उत्तर लिखा। उसने लिखा कि उसके अलावा सभी इस गुरु की पदवी को धारण कर सकते हैं क्योंकि उसमे कई सारे दोष हैं और बाकी सब श्रेष्ठ हैं। गुरूजी ने कहा कि जो अपने दोष देख सकता है, वही गुरु बन सकता है।
यह कथा एक श्रेष्ठ पाठ पढ़ाती है। जो भी स्वयं के दोषों को देखता है, उनपर विचार करता है और उन दोषों को दूर करने का प्रयास करता है वही वास्तव में सर्वश्रेष्ठ भी होता है। माना कि आज के युग में सेल्फ मार्केटिंग जरूरी है लेकिन इसके लिये भी आवश्यक यह है कि आप स्वयं की शक्तियों का विस्तार करें। यदि आप दूसरों के दोषों को ही देखते रहेंगे तो फिर आप स्वयं श्रेष्ठ कैसे बन पायेंगे? दूसरों को कुपात्र ठहराने की बजाय स्वयं सुपात्र बनना ज्यादा अच्छा होता है। श्रेष्ठता की शुरुआत ही इंट्रोस्पेक्शन से होती है।
-जरा सोचिये कि क्या आप :
* स्वयं से वार्ता करते हैं?
* आप अपनी शक्तियों, कमजोरियों, अवसरों और समस्याओं का चार्ट सदा अपडेटेड रखते हैं?
* अंतर्मन के विचारों को सुनकर फैसले करते हैं?
* दूसरों को नीचा दिखाने के बजाय स्वयं को सुधारने का प्रयास करते हैं?
यदि इन सभी प्रश्नों का उत्तर ना है तो यकीन मानिये कि अभी तक आपने श्रेष्ठता की ओर यात्रा प्रारम्भ ही नहीं की है। यही आज की सबसे बड़ी समस्या है। अत: यहां मन्त्र यही है कि स्वयं के दोषों को समझें, उन्हें दूर करें, इंट्रोस्पेक्शन करें तथा अन्यों के दोष ढूंढने से पहले स्वयं के दोषों पर नजर डालें। यही सेल्फ मैनेजमेंट का मर्म है।

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